कुछ बरसाती दोहे
कुछ बरसाती दोहे:
दिनभर बढ़ती उमस में, छोटू था बेचैन।
बारिश में भीगे बिना, कैसे आवे चैन ।।
उमड़ घुमड़ करते रहे, बादल सारी रात।
हाथ निराशा ही लगी, हुई नहीं बरसात।।
नेताओं सा हो गया, मेघों का आलाप ।
आश्वासन देते रहे, दिया न लालीपाप ।।
किया अंतत: मेघ ने, थोड़ा सा छिड़काव ।
टेबिल पर लुढ़की रही, कागज वाली नाव ।।
छिटपुट बारिश से हुईं, सड़कें सारी ताल ।
गिरे न औंधे मुँह कहीं, खुद को तनिक सँभाल ।।
ताप भले ही कम हुआ, उमस बढ़ गयी आज ।
बदन चिपचिपा हो रहा, मची हुई है खाज ।।
क्यों तरसाते बादलों, खुलकर बरसो आज ।
छत पर जी भर भीग लें, मिट जाये सब खाज ।।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
Comments
Post a Comment