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Showing posts from November, 2019

मुक्तक

             एक मुक्तक सामने आकर मधुर स्वर बोलता है। पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।। आदमी से मित्र दर्पण ही भला है। नित्य मेरे राज खुलकर खोलता है।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

नमामि गंगे हर हर गंगे

नमामि गंगे हर हर गंगे ============== नमामि गंगे सुनते सुनते, इक दिन हमने भी ये सोचा गंगा को हम भी दे आएं, पापों का सब लेखा जोखा स्वच्छ मिलेगी गंगा भी अब, तन मन निर्मल हो जाएगा अनजाने जो पाप हुए हैं, उनका मोचन हो जाएगा लगा लगा कर डुबकी जल में, हो जाएंगे मस्त मलंगे निर्मल मन निर्मल तन होगा, खूब कहेंगे हर हर गंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे फिर चिंतन का चला सिलसिला, मन पर बस गंगा ही छाई निर्मल गंगा के प्रवाह की, आस स्वतः मन में जग आई अबकी बार कुम्भ में देखो, स्वच्छ मिलेगी हर हर गंगे साफ रहेगा गंगा का जल, धन्य धन्य हे नमामि गंगे साधू, स्वादू, योगी ढोंगी, नहा नहा होवेंगे चंगे सबके पाप हरेगी गंगा , सभी कहेंगे हर हर गंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे नमामि गंगे के चिंतन की, धारा भी बहती रहती है स्वच्छ बहे गंगा की धारा, ये मंथन करती रहती है अरबों खरबों खर्च हो गया, गंगा मैली ही रहती है आरोपों प्रत्यारोपों की, रस्म सदा निभती रहती है नेता अभिनेता भी इसमें. धोकर पाप हुए हैं चंगे हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे परदे के पीछे भी गंगा, अविरल ही ब...

धार के विपरीत ही मैं तो सदा चलता रहा।

एक दर्पण रूप मेरे नित्य नव गढ़ता रहा। मैं स्वयं की झुर्रियों के बिंब ही पढ़ता रहा।। दौड़ता हरदम रहा लेकिन कहीं पहुँचा नहीं। धार के विपरीत ही मैं.तो सदा चलता रहा। ढूँढकर पदचिन्ह मेरे, छू चुके हैं जो शिखर। मैं तो बस शुभकामनाएं ही सदा देता रहा।। तुम जलाकर बत्तियाँ फोटो खिंचा कर चल दिये। एक दीपक अँधेरों से रात भर लड़ता रहा।। 'कृष्ण' मंदिर में पहुँच, कंचन से तुम तो लद गये। पर सुदामा द्वार पर ही ऐड़ियां घिसता रहा।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

जैसी करनी वैसी भरनी

दूर दूर तक धुआँ धुआँ है दिन में ही अँधकार हुआ है घोर कुहासे के बादल में बेबस सूरज कैद हुआ है. दृश्य सभी धूमिल दिखते हैं चक्षु हारते से लगते हैं कैनवास पर चित्र बने हों दृश्य सभी ऐसे दिखते हैं लेकिन जीवन कठिन हुआ है प्राण वायु का ह्रास हुआ है श्वास श्वास लेने को मानव बना प्रकृति का दास हुआ है नहीं प्रकृति की है ये करनी ये सारी त्रुटियाँ हैं अपनी जो बोया है वह काटोगे जैसी करनी वैसी भरनी अभी समय है खुद को बदलो धूल धुँए को सीमित कर लो रोपो वृक्ष बढ़ाओ जंगल पुनः धरा को स्वर्ग बना लो श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद.