शारदे वंदना
शारदे माँ कर रहा हूँ आपसे ये प्रार्थना। जो रचूँ उसमें सदा कल्याण की हो भावना। भाव भी हों शुद्ध, मानस शुद्ध, चिंतन शुद्ध हो। लेखनी जो भी गढ़े, वो छंद भी माँ शुद्ध हो। जो पढ़े उसमें जगे सद्भाव की ही भावना। शारदे माँ कर रहा हूँ आपसे ये प्रार्थना। गीत ऐसे रच सकूँ जो प्रेम सबमें भर सकें। शांति के सद्भावना के भाव सबके कर सकें। जगत के कल्याण हित ही लेखनी को साधना। शारदे माँ कर रहा हूँ आपसे ये प्रार्थना। प्रेम करुणा.शांति के सद्भाव के ही छंद हों हो सभी का चित्त निर्मल ह्रदय में आनंद हो सहजता में मनुजता की जगे सबमें भावना शारदे माँ कर रहा हूँ आपसे ये प्रार्थना। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।