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Showing posts from December, 2021

पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है

  गीत ( पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है) वसुंंधरा पर जहाँ जहाँ तक, पर्वत का विस्तार है, ऐसा लगता है वसुधा ने किया हुआ श्रंगार है, पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है पर्वत हैं तो हरियाली है पर्वत हैं तो खुशहाली है पर्वत में रहने वालों के गालों पर दिखती लाली है, पर्वत में संपूर्ण प्रकृति का, बसा हुआ संसार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है हरि हर का आगार यहाँ है और मोक्ष का द्वार यहाँ है हिमशिखरों से कल कल बहती गंगा जमुना धार यहाँ है इनमें ही कैलाश बसा है, इनमें ही केदार है! पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है खनिजों का भंडार यहाँ है सदानीर जलधार यहाँ हैं यहीं हिमशिखर, और सघन वन चंदन और दयार यहाँ है जड़ी बूटियो, औषधि फल की तो इनमें भरमार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है मृद जल इनसे ही मिलता है मानसून इनमें टिकता है इनसे सब संसाधन मिलते जीवन इनसे ही चलता है पर्वत से ही प्राणवायु का, होता नित संचार है पर्वत हैं तो धरती का श्रंगार है जल,जन, जंगल, अरु, जमीन सब, परबत की अच्छी होती है परबत में रहने वालों की,  नीयत भी सच्ची होती है सीमित संसाधन हैं फिर भी, मृदु इनका व्यवहार है पर्वत हैं तो ...

गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया)

गज़ल (हाथ में इक ख़त पुराना आ गया) हाथ में इक खत पुराना आ गया। या द फिर गुज़रा जमाना आ गया।। सोचते ही सोचते हम सो गये। स्वप्न में किस्सा पुराना आ गया।। साथ जब से आपका हमको मिला। दर्द में भी मुस्कुराना आ गया।। जिन्दगी तो एक नाटक मात्र है। पात्र बन इसको निभाना आ गया।। आप आये तो लगा ऐसा हमें। दौर शायद वो पुराना आ गया। कुछ चुहल हमने करी कुछ आपने! इस तरह हँसना हँसाना आ गया!! प्यार फूलों से किया है इस कदर! कंटकों से भी निभाना आ गया!! मानसूनी बादलों की आड़ में! कृष्ण अब आंसू छुपाना आ गया!! श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद