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Showing posts from August, 2021

बेटी बनाम बहू

  लघुकथा: बेटी बनाम बहू --------------- मम्मी कल तीजो है, शालिनी को मायके वालों ने बुलाया है। आप कहो तो इसे सुबह छोड़ आऊँगा, तीजो करके शाम को आ जायेगी; सतीश ने सोने से पहले अपनी माँ शकुंतला से कहा। अरे, बहू ने तो मुझसे नहीं कहा; कल ही बबली भी ससुराल से घर आयेगी, उसकी पहली तीजो है, उसके ससुराल वाले भी सिंदारा लेकर आयेंगे, शालिनी चली जायेगी तो मैं अकेली कैसे सम्हालूंगी, शकुंतला बोली।  बात आयी गयी हो गयी। अगले दिन सुबह सुबह ही बबली का फोन आया; मम्मी मैं तीजो करने घर नहीं आ पाऊँगी, हमारी ननद की भी पहली तीजो है, वह और उनकी ससुराल वाले आ रहे हैं, जिस कारण मुझे रुकना पड़ेगा, मेरा इंतजार मत करना। अरे ऐसा कैसे, तेरी भी तो पहली तीजो है, तेरा भी तो आना जरूरी है, शकुंतला बोली। कोई बात नहीं मम्मी, मैं चली आऊँगी तो यहाँ मम्मी जी अकेले कुछ नहीं कर पायेंगी, इसीलिये उन्होंने मुझे रोका है, मैं फिर बाद में किसी दिन आ जाऊँगी, बबली बोली और फोन रख दिया। उधर शकुंतला बड़बड़ाने लगी; कैसे लोग हैं, बहू को पहली तीजो पर भी मायके नहीं भेजते, अपनी लड़की को बुला लिया और बहू को नौकरानी बना दिया, खैर ईश्वर सब ...

सखी ये है कैसा सावन

 सखी ये है कैसा सावन। पहले तो तीजो पर भैया, लेने आ जाते थे। आँगन में अमुआ के नीचे, झूले पड़ जाते थे। ननद भावजें मिल जुलकर सब, झूले झुलवाती थीं। घेवर फैनी चाट पकौड़ी अम्मा बनवाती थीं। भैया भाभी अपने में ही, अब तो रहें मगन। सखी ये है कैसा सावन। दूर देस में बिटिया रहती, कैसे तीज मनाये। जी करता है चिड़िया जैसी, उड़कर ही आ जाये।। उसके बिन तो कोना कोना, लगता सूना सूना । झूले खाली पूछ रहे  हैं, कौन किसे झुलवाये। मम्मी पापा भी उदास हैं, भर भर रहे नयन। सखी ये है कैसा सावन। पढ़ लिख कर सब दूर हो गये, पहुँचे देश विदेश। अलग अलग परिवार सभी के, अलग अलग परिवेश। मेले झूले भूल गये सब, अब क्लब में जाते हैं। तम्बोला का खेल खेलकर, बनते बड़े विशेष। सोच रहा है कृष्ण वक्त ने बदले सभी चलन, सखी ये है कैसा सावन। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।