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Showing posts from June, 2021

पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।

  पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया। नहीं चिंता रही कोई, न कोई डर सता पाया पिताजी आपके आशीष.की हम पर रही छाया हमारी प्रेरणा है आपका सादा सरल जीवन  सदा हम पर रहे बस आपके व्यक्तित्व का साया. नहीं सोचा कि कैसी है, पिता की जेब की सेहत। रखी जिस चीज पर उंगली, उसी को हाथ में पाया। जरूरत के समय अपना, न कोई काम रुकता था। भुला अपनी जरूरत को, हमारा काम करवाया। भले थी जेब खाली किंतु चिंता में नहीं देखा अभावों का हमारे पर नहीं पड़ने दिया साया। पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी, पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

पत्थरों सा जो हो गया होता।

  गज़ल  (पत्थरों सा जो हो गया होता) -------------------------------------- पत्थरों सा जो हो गया होता। आज मैं भी खुदा हुआ होता। फूल ये इस तरह न मुरझाता। प्यार से आपने  छुआ होता।। हम अँधेरों से पार पा लेते। एक भी दीप यदि जला होता। आपने यदि हवा न दी होती।  जख्म फिर से न ये हरा होता।   कंटकों से न घर सजाते तो। आज दामन न ये फटा होता।। काश तू पहले मिल गया होता हाल तेरा न यूँ बुरा होता राज दिल में अगर रखा होता दोस्त तू यूँ न बेवफा होता। कृष्ण  रहमत खुदा की हो जाती। उसकी चौखट पे जो झुका होता।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल)

  जिंदगी से दर्द ये जाता नहीं (तरही गज़ल) जिन्दगी से दर्द ये जाता नहीं और अपना चैन से नाता नहीं। आस की कोई किरण दिखती नहीं। बेबसी में कुछ कहा जाता नहीं।।  जिन्दगी मजदूर की देखो जरा दो घड़ी भी चैन वो पाता नहीं।। रात दिन खटता है रोटी के लिये। माल फोकट का कभी खाता नहीं।। सत्य की जो राह पर चलने लगा, साजिशों के भय से घबराता नहीं।। काम आयेगी न ये दौलत तेरी, मौत का धन से तनिक नाता नहीं।। वो कहाँ किस हाल में है क्या पता, यार की कोई खबर लाता नहीं।। कृष्ण जय जयकार के इस शोर से झुग्गियों के शोर का नाता नहीं।। श्रीकृष्ण शुक्ल,  MMIG - 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद,  (उ.प्र.)

सहजयोग पर मुक्तक

अपने आत्मतंत्र को जानो, आत्मशक्ति का भान करो। तुम ने खुद को कितना जाना, इस पर अनुसंधान करो। आ त्मज्ञान देने माँ निर्मल, पृथ्वी पर अवतरित हुईं। श्री माताजी को पहचानो, सहजयोग का ध्यान करो।। 'मानव मानव का दुश्मन है, कैसे इसको समझायें। द्वेष घृणा के चंगुल से अब, कैसे इसको छुड़वायें। सहज प्रेम से अब मानव को परिवर्तित करना होगा। प्रेम करोगे प्रेम मिलेगा, बात इसे ये समझायें ।'