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Showing posts from March, 2021

अथ माला महात्म्य

  अथ माला महात्म्य ----------------------- आजकल प्रत्येक कार्यक्रम में माला की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कार्यक्रम का शुभारंभ भी सरस्वती जी को माला पहनाए बगैर नहीं होता। मंच पर बैठने वालों के गले में भी जब तक माला सुशोभित न हो तब तक कार्यक्रम की शुरुआत नहीं होती। यहाँ माला पहनने वाला ही नहीं माला पहनाने वाला भी खुद को कुछ विशेष समझने लगता है या यों कह लीजिए कि संतोष कर लेता है कि चलो पहनने वालों में नही तो पहनाने वालों में ही सही, नाम तो आया।  माला पहनाकर वह फोटू अवश्य खिंचवाता है ताकि सनद रहे। जिन्हें माला पहनने पहनाने का सौभाग्य नहीं मिलता वह ऐसे ही नाराज नाराज से बैठे रहते हैं जैसे शादी वाले घर में फूफा रहता है। उनकी पैनी दृष्टि कार्यक्रम के संचालन व अन्य व्यवस्थाओं का छिद्रान्वेषण करने में लगी रहती है और संयोग से कुछ कमी रह गई तो उनकी आत्मा को परम संतोष की अनुभूति होती है। आखिर कार्यक्रम की निंदा का कुछ मसाला तो मिला। कभी कभी माला पहनने वाले इतने अधिक हो जाते हैं कि कार्यक्रम के संचालक भी सभी को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते, और असमंजस रहता है कि कहीं रामलाल की माला ...

होली पर मुंह काला कर दिया

  होली के अवसर आज ही रचित: होली के दिन सवेरे ही सवेरे हमारे पडोसी ने घंटी बजा दी। जब तक हम कुछ समझ पाते , हमारे चेहरे पे कालिख लगा दी। हमने कहा भैय्ये क्यूं पैसे बरबाद कर रहे हो। ब्लैक बोर्ड पर कोयला रगड़ रहे हो। हमारे कालिख लगाकर अपना टाइम भी बरबाद कर रहे हो। कालिख ही मलनी थी तो किसी एजरी केजरी का मुँह काला करते। या किसी सहारा वहारा के जा के मलते। या किसी कोयला मंत्री को ही घेर लेते। तुम्हारा भी अखबार में फोटू छप जाता , फुटेज पा लेते हो सकता है कोई आम आदमी लपक लेता और टिकट पा लेते। मामू सुबह सुबह रंग लगाकर तुमने हमारा ही नहीं अपनी भाभी का मूड भी खराब कर दिया। भला उनसे पहले हमारा मुंह तुमने कैसे काला कर दिया। अब तो तुम्हें हमारे यहां से चाय और गुझिया भी नहीं मिलेगी। और मामू जब बोहनी ही खराब हुई है तो पूरी होली ऐसी ही रहेगी। रही बात हमारी तो हम जैसों से तो सूरदास भी रह गया था दंग। तभी तो कह गया था: सूरदास ये काली कमली चढै न दूजो रंग। रचयिता: श्रीकृष्ण शुक्ल दिनांक: 16.3.2014.

कमजोर नहीं है नारी : व्यंग

 कमजोर नहीं है नारी : व्यंग --------------------------------- कौन कहता है कमजोर है नारी कमजोर कभी नहीं थी वो बेचारी. मुझे तो याद आते हैं बचपन के वो दिन जब साथी मुझे धमकाते थे, डराते थे, हड़़काते थे,  साथ ही कहते जाते थे, ;नानी याद आ जाएगी,  तभी मुझे पता लगा था कि नानी तो नाना से ज्यादा पॉवरफुल है स्कूल में ही एक पहलवानी का मुकाबला हुआ. वहाँ भी यही सुना;जिसने अपनी माँ का दूध पिया हो, सामने आ जाए मुझे लगा मैं व्यर्थ ही पिताजी से डरता हूँ, असली ताकतवर तो माँ है जिसके दूध में इतनी ताकत है, कि पहलवान भी उसी से डरता है. फिर पहलवान को यह भी कहते सुना, इतनी मार लगाऊँगा कि   छठी का दूध याद आ जाएगा, अब भाई छठी का दूध तो बच्चा माँ का ही पीता है. वैसे तो आजकल तमाम बच्चे सीजेरियन से पैदा होते हैं,  लेकिन छठी का दूध तो वह भी माँ का ही पीते हैं, बल्कि आजकल तो डाक्टर छह महीने तक सिर्फ माँ का दूध ही पिलवाते हैं भले ही बाप फिर बड़े होने तक खिलाता हो, पिलाता हो, पढ़ाता हो, लिखाता हो, लेकिन याद छठी का दूध ही आता है, याद नानी ही आती है, काम माँ का दूध ही आता है. इतनी शक्तिशाली है ...

जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं।

जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं नारी तो सबकी जननी है, उससे ही जीवन पाया है, उसने पयपान कराकर ही, हमको बलवान बनाया है, वह जननी है, वह भगिनी है, सहचरिणी है, पुत्री भी है, निज प्रेम और निज करुणा से उसने संसार चलाया है। उस नारी को तुम आज जन्म लेने से पहले मार रहे, निज अहंकार, निज दानवता से मानवता को मार रहे, नारी विहीन ये सृष्टि भला, कितने बरसों चल पाएगी, तुम आज मार कर नारी को, आने वाला कल मार रहे। नर नारी के संयोजन से ही सृजन सदा होता आया, रथ के दो पहियों जैसे हैं, नर नारी ये सुनता आया, यदि एक चक्र रुक जाता है, तो सफर वहीं रुक जाता है, फिर भी नारी को ये समाज, नित अपमानित करता आया हम अहंकार में नारी पर सामाजिक बंधन कसते हैं, हम राहु बने अवसर पाकर, उसकी आजादी ग्रसते हैं, हम अहंकार में अँधे हैं, पर ये क्यों भूले बैठे हैं, जिस जगह पूज्य होती नारी, उस जगह देवता बसते हैं। ऐ मानव अब तो हो सचेत, मत नारी का अपमान करो, उसको कुलक्षिणी कह कह कर, निज कुल का मत संधान करो, वह गृह लक्ष्मी है, किन्तु तुम्हें आराध्य मानती रहती है, उस शक्ति स्वरुपा नारी का, प्रतिपल प्रतिक्षण सम्मान करो। श्रीक...

मुस्कुराने के लिये

  मुस्कुराने के लिए  रूठना भी है जरूरी, मान जाने के लिये। कुछ बहाना ढूंढ लीजे मुस्कुराने के लिए । जिन्दगी की जंग में उलझे हुए हैं इस कदर। वक्त ही मिलता नहीं, हँसनै हँसाने के लिये। काम ऐसा कर चलें जो नाम सदियों तक रहे। अन्यथा जीते सभी हैं सिर्फ खाने के लिये। ग़मज़दा कोई नहीं है, मौत पर भी आजकल। लोग जुड़ते हैं फक़त चेहरा दिखाने के लिये। कृष्ण ये धरना यहाँ पर अनवरत चलता रहे। माल म‌‌‌िलता है यहाँ भरपूर खाने के लिये। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।