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Showing posts from May, 2020

गज़ल 'आशियाँ ही आशियाँ'

आशियाँ ही आशियाँ (गज़ल) जिन दरख्तों को गिराना चाहती हैं आँधियाँ।। कुछ परिन्दों ने बना रक्खे हैं उनमें आशियाँ। कल यहाँ पर खेत थे बस और कुछ पगडंडियाँ। अब यहाँ पर दूर तक हैं आशियाँ ही आशियाँ।। खेत थे, खलिहान थे, कुछ बाग़ थे, कुछ बस्तियाँ। बिल्डिंगें हैं, मॉल हैं, कुछ टॉवरें, कुछ चिमनियाँ।। इस नदी के तीर पर जबसे बनी हैं बस्तियाँ। जी नहीं पाती हैं तबसे इस नदी में मछलियां।। चूसने मकरंद भँवरे अब यहाँ भी आ गये। आज इन गुंचों से गायब हो रही हैं तितलियां। बाप बेटे की यहाँ आपस में बनती ही नहीं। फासला इक उम्र का है दो दिलों के दरमियाँ।। क्या करें कैसे करें किससे करें अब गुफ्तगू। 'कृष्ण' अपने साथ बस दीवार दर या खिड़कियाँ।। श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। (उ.प्र.) 244001 मोबाइल नं. 9456641400

कवि पत्नी की नोंकझोंक

07.02.2020 कवि जी और घराणी में नित नोंकझोंक चलती थी। अपना घर तुम स्वयं सम्हालो, वो अक्सर कहतीं थी।। आप गोष्ठियों में सखियों सँग मौज मजा करते हो। घर में आकर मोबाइल में व्यस्त रहा करते हो। मुझसे घर में भी सीधे मुँह बात नहीं करते हो। और कामवाली से भी अच्छे से बतियाते हो।। न हूँ नौकरानी, बीबी हूँ, कान खोलकर, सुन लो। बहुत हो गया अपना घर अब खुद तुम स्वयं संभालो। मुझको कम मत समझो, मैं भी खूब लिखा करती थी। विद्यालय के कार्यक्रमों में प्रथम रहा करती थी। मुझको थोड़ी आजादी दो, मैं लिखने लग जाऊँ। मंचों पर जाकर मैं भी अब थोड़ा नाम कमाऊँ।। रौद्ररूप उनका लख कर, भेजा अपना चकराया। आत्मसमर्पण करके हमने उनको त्वरित मनाया। उसी दिवस जाकर उनको स्मार्टफोन दिलवाया। व्हाट्सएप का संचालन भी, उनको तुरत सिखाया। नोंकझोंक तो छूटी लेकिन आयी विपदा भारी। ऑनलाइन वो रहें कृष्ण,  पर हम काटें तरकारी।। श्रीकृष्ण शुक्ल,  MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद (उ.प्र.) 244001 मोबाइल नं. 9456641400.

लॉकडाउन की मधुशाला

लॉकडाउन की मधुशाला मतवाले का हाल न पूछो, नहीं मिल रही थी हाला। बोतल खाली, सागर खाली, खाली था मधु का प्याला। दिन चालीस हुए तो आखिर, घड़ी तसल्ली की आयी। मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं, किंतु खुल गयी मधुशाला। बूँद बूँद को तरस गया था, रोज नीट पीने वाला। रोज प्रार्थना करता था प्रभु, खुलवा दो अब मधुशाला। ऊपरवाले ने भी शायद, उसकी पीड़ा को जाना। कहीं न प्यासा ही मर जाये, अतः खोल दी मधुशाला।। पीनेवाला श्वास श्वास में, रटता था हाला हाला। कोई याद मुझे भी  करता, सोच रहा ऊपरवाला।। श्रद्धा से तुम जो माँगोगे, मुझसे वो ही पाओगे। अतः बंद हैं मंदिर मस्जिद, अत: खुल गयी मधुशाला। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। उ.प्र.। मोबाइल नं. 9456641400

हम अब भी जमीं पर हैं

एक.शेर वो भी क्या जमाना था, ये भी क्या जमाना है। हम तब भी जमीं पर थे, हम अब भी जमीं पर हैं। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद। मोबाइल नं. 9456641400

घर वापसी

घर वापसी -------------- पापा, अभी कितना और चलना है, घर कब पहुँचेंगे, नन्हीं मुनिया ने राकेश से पूछा। पहुँच जायेंगे बिटिया, जल्दी पहुँच जायेंगे, कहते कहते राकेश का स्वर भर्रा गया था। तीन दिन हो गये चलते चलते, मुनिया अब परेशान होने लगी है, अभी और कितने दिन लगेंगे, राकेश की पत्नी संतोष ने पूछा। मुनिया की माँ, अभी तो कई दिन लगेंगे, लेकिन जब घर से निकल आये हैं तो परेशानियां तो सहनी ही पड़ेंगी। वहाँ भी तो परेशान ही थे। न नौकरी रही, न आमदनी, ऊपर से मकान मालिक रोज मकान खाली करने को धमका रहा था। राकेश ने संतोष को समझाया। हुम्म: वो तो अच्छा हुआ, मैंने मोटे मोटे रोट और मठरियां बनाकर साथ में रख ली थीं चार पाँच दिन का काम तो चल ही जायेगा, यहाँ तो रास्ते में कहीं कोई दुकान या ढाबा भी खुला हुआ नहीं मिल रहा, संतोष बोली। लॉकडाउन को चालीस दिन हो चुके थे। पास की जमापूँजी खत्म हो चुकी थी। किसी से कोई सहायता की उम्मीद न थी। न रेलें चल रही थी न बसें। जी कड़ा करके उसने पैदल ही घर वापसी का निर्णय ले लिया। सिर पर बड़ी सी अटैची, पत्नी के पास भी एक गठरी थी और पाँच साल की नन्हीं मुनिया भी पैदल पैदल चल रही थी।  श...