जनता ठहरी भोली भाली
दिल्ली चुनाव के मद्देनज़र: जनता ठहरी भोली भाली ------------------------------- अबकी बारी दिल्ली वाली, सबकी बातें मस्के वाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। 'आप' प्रलोभन दिखलाते हो, हम खुद के श्रम का खाते हैं। झूठे वादे, झूठी आशा, 'आप' यही लेकर आते हैं।। हम क्यों झाँसे में आ जाएं, चाल आपकी देखी भाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। दिखते नये नये हथकंडे, सबके अपने अपने फंडे। हरे, तिरंगे, नीले, भगवे, अपने झंडे, अपने डंडे।। हिन्दू मुस्लिम अगड़ा पिछड़ा, वही सियासत वोटों वाली। समझ न पाती कुटिल इरादे, जनता ठहरी भोली भाली।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।