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जनता ठहरी भोली भाली

दिल्ली चुनाव के मद्देनज़र: जनता ठहरी भोली भाली ------------------------------- अबकी बारी दिल्ली वाली, सबकी बातें मस्के वाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। 'आप' प्रलोभन दिखलाते हो, हम खुद के श्रम का खाते हैं। झूठे वादे, झूठी आशा, 'आप' यही लेकर आते हैं।। हम क्यों झाँसे में आ जाएं, चाल आपकी देखी भाली।। सपने बाँटो और रिझाओ, जनता ठहरी भोली भाली।। दिखते नये नये हथकंडे, सबके अपने अपने फंडे। हरे, तिरंगे, नीले, भगवे, अपने झंडे, अपने डंडे।। हिन्दू मुस्लिम अगड़ा पिछड़ा, वही सियासत वोटों वाली। समझ न पाती कुटिल इरादे, जनता ठहरी भोली भाली।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

मुक्तक : उनको कौन जगाए।

मुक्तक कुछ जागे हैं, कुछ सोये हैं। कुछ अपने में ही खोये हैं।। लेकिन उनको कौन जगाये। जो जागे हैं, पर सोये हैं।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

नववर्ष मात्र इतना करना

नववर्ष मात्र इतना करना पूरा करना सबका सपना चहुँ ओर शांति सुख चैन रहे माँ बहनों का सम्मान रहे वहशी हैवान दरिंदों से नारी की अस्मत बची रहे फिर हो कायम गौरव अपना नववर्ष मात्र इतना करना। नव युवक देश का मान करें सब राष्ट्रवाद का गान करें भारत माता के वैभव का हर पल हर क्षण सम्मान करें सबके हाथों में फहराये मात्र तिरंगा ही अपना हों कृषक सुखी संपन्न सभी वो आत्मघात नहिं करे कभी फसलों का समुचित मूल्य मिले होगा प्रसन्न वो कृषक तभी। भारत गाँवों में बसता है पूरा करना उनका सपना। अब जाति धर्म का द्वेष मिटे, आतंकवाद का दंश हटे, सीमाएं सभी सुरक्षित हों नापाक इरादे सभी मिटे संपूर्ण विश्व में कायम हो भारत का ही गौरव अपना नववर्ष मात्र इतना करना। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद। 04.01.2020

रूढ़ियों को तोड़िए

रूढ़ियों को तोड़िए, धर्मांधता को छोड़िए। और सबको राष्ट्र की धारा में लाकर जोड़िए।। हैं नहीं केवल अँधेरे, रौशनी भी है यहाँ। बस जरा अपने ह्रदय की खिड़कियों को खोलिए।। कहीं बढ़कर ये स्वयं अपना ही मुख न नोंच लें। हाथ के नाखून को बढ़ने से पहले तोड़िए।। हिंदू, मुसलमाँ सिक्ख, ईसाई की चर्चा छोड़कर। सभी का इन्सानियत से आज नाता जोड़िए।। देश उपवन है यहाँ पर हर तरह के फूल हैं। कृष्ण सबको एक माला में पिरोकर जोड़िए। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।।