Posts

Showing posts from April, 2025

एक नन्हीं कली

Image
 एक नन्हीं कली, लाड़ से थी पली, नीड़ को छोड़कर बन पराई चली, एक नन्हीं कली। खेलते कूदते कब बड़ी हो गई,, पॉंव पर अपने खुद ही खड़ी हो गई। आज दुल्हन बनी बैठ डोली चली, एक नन्हीं कली, लाड़ से थी पली, प्यार पाया जहॉं, खेलती थी जहॉं, बचपना और यौवन भी पाया यहॉं, छूट ऑंगन गया, जिसमें फूली फूली, एक नन्हीं कली, लाड़ से थी पली धैर्य से तुम स्वयं लक्ष्य को साधना प्रीत की डोर से रिश्तों को बॉंधना, पथ नया है नयी है पिया की गली, एक नन्हीं कली, लाड़ से थी पली, वेद सुषमा की बगिया की कोमल कली, आज सुरभित हुई, फूल बन कर खिली, छूटा उपवन पुनः वंदना को मिली, एक नन्हीं कली, लाड़ से थी पली। नीड़ को छोड़कर बन पराई चली। एक नन्हीं कली। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

अब यहॉं रूदन न होगा, रोष होगा।

Image
 अब यहॉं रूदन न होगा, रोष होगा। ——————————- गूँजता जयघोष शंकर का जहाँ था, सुना है इकबाल हजरत का वहॉं था, रकतरंजित वो धरा फिर हो गयी है, खो गया चैनो अमन जाने कहाँ है। मृत्यु भी अब धर्म पहले पूछती है, तड़तड़ाती गोलियॉ फिर गूॅंजती हैं, और मानवता यहॉं पर क्षत विक्षत है, बस जिहादी मानसिकता नाचती है। जंगली कुत्ते यहॉं फिर आ रहे हैं, गाय बछड़ों को पुनः धमका रहे हैं, काट खाना, नोंचना फिर मार देना, मजहबी उन्माद फिर फैला रहे हैं। क्यारियां केशर की सूनी सी पड़ी हैं, शिकारों की पंक्तियां ठिठकी खड़ी हैं, बसी सिहरन झील की गहराइयों में, मरघटी सी शांति है अब वादियों में। अब यहॉं रूदन न होगा‌ रोष होगा, अहिंसा की जगह हिंसक घोष होगा, अब जिहादी पशु, न पालक बच सकेंगे, देखना फिर से यहॉं जयघोष होगा। क्यारियों में रंग केसर का खिलेगा, दूब का मैदान भी कायम रहेगा, शंखध्वनि से वादियां गुंजित रहेंगी, तिरंगे का ही सदा वर्चस्व होगा। तिरंगे का ही सदा वर्चस्व होगा। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।