हिन्दी सजल के विभिन्न रंगों में रंगे फूलों का गुलदस्ता है दिनांक 11.11.2024 की साप्ताहिकी।
हिन्दी सजल के विभिन्न रंगों में रंगे फूलों का गुलदस्ता है दिनांक 11.11.2024 की साप्ताहिकी। --------------------------------------------------------- मात शारदे मुझे तार दो, शुचिता दे जीवन संवार दो। आखर आखर की पावनता, जन जन के मन में उतार दो। अत्यंत सुंदर, सरल व सहज ये पंक्तियां आदरणीय श्री वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी की शारदे वंदना की हैं जो सजल विधा में लिखी गई हैं। दैनिक आर्यावर्त केसरी की विगत सोमवार की साप्ताहिकी हिंदी काव्य की नव विधा सजल को ही समर्पित रही। विभिन्न साहित्यकारों की सजल विधा में सृजित रचनाएं इस अंक का आकर्षण रहीं। वस्तुत:, सजल विधा उर्दू ग़ज़ल की तरह ही पूर्णतः: हिन्दी को समर्पित तथा हिन्दी काव्य की मात्राओं की मापनी पर आधारित विधा है। इससे पहले हिन्दी के साहित्यकार ग़ज़ल की विधा में ही हिन्दी में सृजन करते थे तथा उसे हिन्दी ग़ज़ल कहते थे। उनका मात्रा भार उर्दू की बहर की मापनी के अनुसार होता था, तथा उसमें उर्दू ग़ज़ल के ही नियम लागू होते थे, और हिन्दी ग़ज़ल की विधा उर्दू की ही विधा के रूप में जानी जाती थी। इसी कारण से हिन्दी के कलमकारों ने हिन्दी की स्वतंत्र विधा सजल का...