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Showing posts from July, 2023

कविवर दिग्गज मुरादाबादी : व्यक्तित्व और कृतित्व

  अत्यंत सरल किंतु अत्यंत स्वाभिमानी थे दिग्गज मुरादाबादी  जी। स्मृति शेष दिग्गज मुरादाबादी जी से मेरा प्रथम परिचय सन् 1984 में रामपुर में हुआ था। उस समय वह रामपुर में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। बल्कि यह कहना भी सर्वथा सत्य होगा कि कविता लिखने हेतु मुझे उन्होंने ही प्रोत्साहित किया। वह अत्यंत सरल व्यक्ति होने के साथ साथ अत्यंत स्वाभिमानी भी थे।  सरल इतने कि पहली मुलाकात में ही पूर्ण अपनत्व से मिलते थे, लगता ही नहीं था कि हम पहली बार मिल रहे हैं, और स्वाभिमानी इतने कि जहाँ जरा भी स्वाभिमान को ठेस लगी, फिर उस तरफ मुड़कर भी नहीं देखते थे। एक बार हमने और टोस्ट मुरादाबादी ने मिलकर रामपुर में सवेरा साहित्यिक संस्था की स्थापना की, उसमें दिग्गज जी व हीरालाल किरण जी भी संरक्षक थे। उसी संस्था के संयोजन में रामपुर में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन के आयोजन की योजना बनी। हम सबके साथ साथ दिग्गज जी भी अत्यंत सक्रियता के साथ आयोजन की योजना व व्यवस्थाओं में लगे रहते थे। किंतु आयोजन से कुछ दिन पूर्व ही किसी बात पर वह नाराज हो गये, फिर तो उन्हें बहुत मनाने का प्रयास किया गया लेकिन वह आयोजन...

ओस की बूँदें : हाईकू संग्रह, समीक्षा

 ओस की बूँदें : सामाजिक परिवेश पर एक शानदार हाइकू संग्रह I -------------------------------------------------------------------------- ओस की बूँदें यद्यपि आकार प्रकार में छोटी सी होती हैं किंतु सौंदर्य में अप्रतिम होती हैं, पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद मोती का अहसास दिलाती है, घास पर पड़ी ओस पर नंगे पाँव चलने से उसकी शीतलता मस्तिष्क तक पहुँचती है I कुछ कुछ ऐसी ही अनुभूति आदरणीय अशोक विश्नोई जी के हाइकू संग्रह 'ओस की बूँदें'  पढ़ने पर होती है I हाइकू यद्यपि जापानी छंद है किंतु यह सूक्ष्म आकार का छंद ओस की बूँद की तरह ही अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है I हाइकू केवल तीन पंक्तियों का वार्णिक छंद है, जिसमें विषम चरणों में पाँच वर्ण होते हैं तथा सम चरण में सात वर्ण होते हैं I  दोहों की तरह हाइकू भी काव्य की ऐसी विधा है जिसमें छोटी सी कविता में बड़ा संदेश दिया जा सकता है I श्री अशोक विश्नोई जी की इस पुस्तक में लगभग चार सौ हाइकू प्रकाशित हैं, जिनमें उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में विभिन्न परिस्थितियों पर सशक्त अभिव्यक्ति दी है, फिर चाहे वह सामाजिक हो, राजनीतिक हो, व्यक्तिगत व्यवहार पर...

क्या रखा है जीत में या हार में

सजल क्या रखा है जीत में या हार में और क्या है व्यर्थ की तकरार में आज सीधी और सच्ची बात का, कुछ असर होता नहीं व्यवहार में तुम सुनाकर मंच पर जो छा गये, कल छपा था चुटकुला अखबार में काम ऐसा हो कि जग में नाम हो नाम का ही मोल है किरदार में क्यों जली लंका तनिक ये सोचिए, नाश ही परिणाम है व्यभिचार में श्रीकृष्ण शुक्ल,  मुरादाबाद।

संस्मरण : बाढ़ के बीच दो दिन

बाढ़ के बीच दो दिन ------------------------- वर्ष 2010 की बात है।  18 सितंबर शनिवार को सायं 4 बजे से तेज बारिश की झड़ी लग गयी।  उस समय मैं बिधुना (औरैया) शाखा में नियुक्त था और मुरादाबाद आने के लिये कन्नौज बस अड्डे पर खड़ा था।  बस में यात्रा के दौरान भी निरंतर कभी तेज तो कभी मद्धिम वर्षा होती रही।  जैसे तैसे सुबह के 4.00 बजे मुरादाबाद घर पहुँचे।  उस समय भी वर्षा हो रही थी।  अगले दिन रविवार को हमारे नवजात पौत्र की छठी का आयोजन था। उस दिन भी पूरे दिन कभी तेज तो कभी छिटपुट बारिश होती रही। शाम को छठी के आयोजन के बाद मैं अपनी जीजी व जीजाजी को कार द्वारा उनके घर ( जो गंगा मंदिर के पास, किसरौल में रहते थे) छोड़ने गया। बारिश उस समय भी हो रही थी और जगह जगह सड़कों पर पानी भरा था।  उस दिन भी देर रात तक बारिश होती रही।  अगले दिन प्रातः आसमान साफ था। रामगंगा का जलस्तर निरंतर बढ़ रहा था, किंतु हमारे घर के सामने सड़क पर पानी नहीं था, जिस कारण हम निश्चिंत थे। इससे पूर्व भी जब जब रामगंगा चढ़ती थी, हमारी सड़क पर थोड़ा पानी आता था जो एक दिन में ही उतर जाता था।  दोपहर 12 ...