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Showing posts from 2022

सात जन्म के साथ का वरदान

 शादी की पचासवीं सालगिरह पर पति पत्नी ने घर में पूजा रखी, जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी, उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये,  तुरंत आकाशवाणी हुई और वर माँगने का मौका दिया, पति ने तुरंत सात जन्मों तक एक दूसरे का साथ माँग लिया, भगवान् ने कहा एवमस्तु , अगले सात जन्मों तक तुम्हें एक दूजे का साथ दिया यह सुनते ही पत्नी बोली भगवन ये क्या कर दिया,  ये वरदान है या सजा,  न कोई चेंज न मजा पूजा तो हम दोनों ने की थी, तो वरदान इनको ही क्यों दिया, पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की, वेदी मैंने  सजाई,  प्रसाद मैंने बनाया,  पूजा की सारी सामग्री मैं लाई, यहाँ तक कि पंडित जी की दक्षिणा भी मैंने दी, इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े, मस्तक नवाया, आरती घुमायी, ये सब तो मैंने भी साथ में किया, फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया, अब मुझे भी वर दीजिए सात जन्म वाली स्कीम को वापस ले लीजिए, भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे, मेरी ही बनायी नारी, मुझ पर ही पड़ गयी भारी, बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया,  दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता, इतना जा...

सोच ज़रा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया II

 धन यश वैभव के चक्कर में, जीवन व्यर्थ गँवाया I अंतिम पल वह धन भी तेरे, किंचित काम न आया II काया तो छूटी, माया भी, साथ न ले जा पाया I सोच ज़रा क्या खोया तूने, सोच जरा क्या पाया II सागर की गहराई से जो हर पल डरता आया I सिंधु तीर की तलछट से वो  बस पत्थर चुन पाया II जो लहरों पर तैर गया, उसने ही मोती पाया I हंसों का अगुआ बन कर भी,  हंसों को ही भूला I ताज़ पहनकर बगुले जैसा, फिरता फूला फूला II जिसने थामा हाथ उसे ही तूने सदा गिराया I सबके पथ अवरुद्ध किये, खुद आगे बढ़ना भूला I तू तल पर ही रहा शिखर पर, पहुँचा लँगड़ा लूला II छल छंदों की परिणति को भी, अब तक जान न पाया I अपना हित तो साध न पाया, बैठा बना पुरोधाI उस गड्ढे में गिरा स्वयं जो, दूजों खातिर खोदा II अवसर मिले अनेकों लेकिन, भुना एक नहिं पाया I तू मंजिल तक पहुँच गया था, फिर कैसे तू अटका I मंजिल पर टिकने के बदले, अहंकार में भटका II नियति जिसे उलझाती उसको कृष्ण न सुलझा पाया II श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद I

कुछ बरसाती दोहे

कुछ बरसाती दोहे: दिनभर बढ़ती उमस में, छोटू था बेचैन। बारिश में भीगे बिना, कैसे आवे चैन ।। उमड़ घुमड़ करते रहे, बादल सारी रात। हाथ निराशा ही लगी, हुई नहीं बरसात।। नेताओं सा हो गया, मेघों का आलाप । आश्वासन देते रहे, दिया न लालीपाप ।। किया अंतत: मेघ ने, थोड़ा सा छिड़काव । टेबिल पर लुढ़की रही, कागज वाली नाव ।। छिटपुट बारिश से हुईं, सड़कें सारी ताल । गिरे न औंधे मुँह कहीं, खुद को तनिक सँभाल ।। ताप भले ही कम हुआ, उमस बढ़ गयी आज । बदन चिपचिपा हो रहा, मची हुई है खाज ।। क्यों तरसाते बादलों, खुलकर बरसो आज । छत पर जी भर भीग लें, मिट जाये सब खाज ।। श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

वोट डालना जरूर, आपका ये काम है I

  वोट डालना जरूर, आपका ये काम है I ———————————————– यज्ञ लोकतंत्र का, चुनाव इसका नाम है I वोट इसकी आहुति है, वोट ही प्रणाम है II पाँच साल का चुनाव, एक दिन का काम है I वोट डालना जरूर, आपका ये काम है I चक्र ये विकास का, रुक न जाये फिर कहीं। काम जितने चल रहे हैं ठहर जायें ना वहीं।। एक एक वोट का महत्व कुछ भी कम नहीं I वोट ही नहीं पड़ा तो, जीतने का दम नहीं II खुद ही खुद की जीत पर लगे न यों विराम है I वोट डालना जरूर, आपका ये काम है II जिसके जितने वोट हैं, वो उतना ही समर्थ है I वोट ही नहीं पडा तो, वोट का क्या अर्थ है II लोकतंत्र में हमारा, वोट ही तो शस्त्र है I वोट बिना हार जीत, का विचार व्यर्थ है II हार जीत का हिसाब, करता सिर्फ राम है। वोट डालना जरूर, आपका ये काम है।I श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद I 16.01.2022